शिवरात्रि पर बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठता है काठगढ़ मंदिर

शिवरात्रि पर बम-बम भोले के जयकारों से गूंज उठता है काठगढ़ मंदिर

DPLN ( कांगड़ा )
17 फरवरी। हिमालय के ऑंचल में बसा हिमाचल प्रदेश अपनी अलौकिक एवं मनोहारी धरती के कारण आदिकाल से ही देवी-देवताओं की प्रिय तपस्थली रहा है। इसी देव संस्कृति की वजह से हिमाचल को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। देवभूमि की ऐसी ऐतिहासिक एवं समृद्व सांस्कृतिक गौरवशाली पृष्ठभूमि को समेटे, कांगड़ा ज़िला आरम्भ से ही धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। इसकी मान्यताएं, धारणाएं एवं परम्परायें आदिकाल से ही जनमानस में अपना अस्तित्व बनाए हुये हैं।

शिव महापुराण के अनुसार शिव भगवान ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो निराकार एवं सकल दोनों हैं। यही कारण है कि शिव भगवान का पूजन, लिंग एवं मूर्ति दोनों में समान रूप से किया जाता है।

ज़िला के इन्दौरा उपमंडल मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित शिव मंदिर, काठगढ़ का अपना अलग महात्म्य है।  शिवरात्रि के महापर्व पर, इस मंदिर में प्रदेश के अलावा सीमांत राज्यों, पंजाब एवं हरियाणा से भी असंख्य श्रद्वालु विशेष रूप से अपने भोले के दर्शन करने आते हैं।  शिवरात्रि पर श्रद्धालुओं की बम-बम भोले के जयकारों और घंटियों की आवाज से मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। इस बार यहां पर ज़िला स्तरीय शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन 17 से 19  फरवरी तक किया जा रहा है।

पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान अति महत्वपूर्ण बन गया है। वर्ष 1986 से पहले, यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था। अब शिवरात्रि के साथ-साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रावण मास महोत्सव, शरद नवरात्रि तथा अन्य सभी धार्मिक समारोह आयोजित किए जाते हैं।

आदिकाल से स्वयंभू प्रकट, सात फुट से अधिक ऊंचा, 6 फुट 3 इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में, यह शिवलिंग व्यास दरिया तथा छौंछ खड्ड के संगम स्थान के दाईं ओर टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित  है। छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊँचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। 

 प्रचलित मान्यताओं के अनुसार माँ पार्वती और भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। शिवलिंग के रूप में पूजन किये  जाने वाले भगवान शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7-8 फुट है; जबकि माँ पार्वती के रूप में आराध्य हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है । यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय तथा काले-भूरे रंग का है।

मंदिर के उत्थान के लिए वर्ष 1984 में प्राचीन शिव मंदिर प्रबन्धकारिणी सभा, काठगढ़ का गठन किया गया। सन् 1986 में इस सभा का पंजीकरण होने के बाद मंदिर में आने वाले श्रद्वालुओं की सुविधा के लिए कई विकास कार्य आरम्भ किये गये। सभा के सदस्यों की कड़ी मेहनत और लग्न व लोगों के योगदान से सभा द्वारा वर्ष 1995 में प्राचीन शिव मंदिर के दायीं ओर भव्य श्री राम दरबार मंदिर का निर्माण करवाया गया। मंदिर कमेटी का वर्तमान मे ज़िम्मा संभाल रहे प्रधान ओम प्रकाश कटोच बताते हैं कि श्रद्धालुओं की दिन- प्रतिदिन बढती संख्या को देखते हुये कमेटी ने लंगर हॉल, सराए भवन, भव्य सुन्दर पार्क, पेयजल की व्यवस्था तथा सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाया है। इसके अतिरिक्त सरकार तथा लोगों की सहभागिता से कमेटी द्वारा निर्माण कार्य निरंतर जारी हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्वालुओं की सुविधा के लिए कमेटी प्रतिदिन तीन बार निःशुल्क लंगर की व्यवस्था उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा कमेटी समय-समय पर निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन भी करवा रही है ।

 कमेटी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त हर वर्ष जनवरी माह में मेधावी छात्रवृति परीक्षा का आयोजन भी करवाती है।  इस वर्ष 22 जनवरी को संचालित मेधावी छात्रवृति परीक्षा जोकि हिमाचल व पंजाब प्रदेश के 16 परीक्षा केंद्रों में लगभग 2600 बच्चो ने ओएमआर प्रणाली के तहत परीक्षा दी थी जिसमें पांचवीं, दसवीं, व बाहरवी कक्षा के 68 बच्चों को मेरिट के आधार पर चुना गया हैं जिन्हें 17 फरवरी  को महाशिवरात्रि महोत्सव के अवसर पर नगद राशि, प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त गरीब बच्चों की पढ़ाई तथा गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी का खर्च भी सभा अपने स्तर पर वहन करती है।

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